राहत इंदौरी जैसे शायर कभी मरते नहीं, जिंदा रहते हैं लोगों के दिलों में, लफ्ज़ बनकर गूँजते रहते हैं फिजा में नम आँखों से राहत साहब को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ अपनी इस ग़ज़ल से- प्रोफेसर डॉ• सजल प्रसाद
डॉ• सजल प्रसाद |
उसका तो अपना सारा जहाँ होता है।
रह जाते जो अनछुए व अनकहे पहलू,
बज़्म-ए-अदब में वही तो बयाँ होता है।
महफ़िल का इंतज़ार न कीजिए हुजूर,
हर लम्हा ही शायरी का समाँ होता है।
लफ़्जों से पहले ख़्यालों में है शायरी,
सामईन को बेख्याली का गुमाँ होता है।
किस कदर तहजीब से हो रहा खिलवाड़,
फिजा में छाया पश्चिमी धुआँ होता है।
सच्चे शायरों के दिल मोम सरीखे 'सजल',
पत्थरों पर लेकिन अमिट निशाँ होता है।
डॉ. सजल प्रसाद की कलम से।
0 Comments