चप्पा चप्पा ,गली गली ,हम लेकर आये हैं बिजली ....बिजली पर लोगों की बेतुकी बातें -----------------
किशनगंज टाइम्स के लिए शशिकांत झा की रिपोर्ट।
किशनगंज (बिहार )- केरोसीन को लोगों की पकड़ से दूर करने के बाद गांव और देहाती इलाकों में मानों बिजली अपनी मन मर्जी से जलती है ।बर्षा के छींटे हो या फिर थोड़ी सी हवा -बिजली भुकभुका कर गायब ।फिर शुरु होती है विभागीय मानवदल की दौड़ भाग ,तब कहीं घंटोंं ,चार कभी छः तो कभी कभी बारह घंटों के बाद ये आती है ।पर इसका स्थाई हल विभाग के लाख खोजने पर भी नहीं मिला है ।सो अब फिर से इसी आने जाने के सिलसिलाओं पर निर्भर करते हैं लोग ।तो आईऐ ,कुछ उपभोक्ताओं की जुवानी सुनते हैं बिजली की कहानी ---
भारत नेपाल की सीमाओं से ठीक सटे डाकूपाड़ा के ग्रामीण प्रसन कुमार ,देव नारायण कहते हैं -छय इडा बिजली छे ,बिजलीर हाकिम ला पोढ़ा लिखा छे ना नी ।सोब दिनेर यही हाल ।बाजी मिस्त्रतरीर ते अजबे हाल छे ।टाका लिवे ते ठीक कोरबे ।ऐसे कई उपभोक्ताओं में से दिघलबैंक ,बहादुरगंज बाजार से भी लगभग यही भाषा कि -विभागीय लापरवाही हीं इस का असली कारण बताया जा रहा है ।जिसकी वजह से भारत नेपाल की सीमाओं से सटे गांवों और नगर परिषद सहित लौचा ,भाटाबाड़ी ,दोमोहनी ,बनगामा तथा ईकड़ा ,पदमपूर आदि इलाकों से भी यही आवाजें आती सुनी जा सकती है ।कड़ोडो़ं की सरकारी खर्चे ,विभागीय मोबाईल रिंगटोन केवल दिखावे के लिए रह गई है ।उस पर इसकी गुणवत्ता पर जे ई ,ए ई तक बोल जाते हैं "मसीनरी में खराबी आ हीं जाती है ।पर एक बात समझने और समझाने की है कि -उपर बाले दुखियों की नहीं सुनता रे ।ऐसे में आम उपभोक्ताओं का ये कहना कि -लगातार बिजली की सेवाओं से विभाग को हीं जलन होती है ,ताकि लोग इन्हें याद रखें ।
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