खेतों में खड़ी मक्के की फसल। फसलों की कहानी ,किसानों की जुवानी ।फसलों की कम कीमतें बढ़ाती परेशानी । |
किशनगंज (बिहार )- जिले के कई प्रखंडों में वर्तमान में हुई बर्षा ,मक्कों की खड़ी फसलों के लिए अमृत बर्षा मानी जा रही है । इस बर्षा के होने से किसानों के एक पटवन का लाभ हुआ है ।जिससे किसानों के चेहरों पर संतोष के भाव दिखने लगे हैं ।इससे पहले भी बीते सप्ताह क्षेत्र के हिस्सों में बर्षा हुई थी ।कुल मिलाकर मक्के की फसलें लहलहा उठी है।
हलांकि जिले के किसान हमेशा से अपनी मेहनतों के फलों को पा लेने में सौभाग्यशाली नहीं कहे जा सकते हैं ।कारण भी साफ है कि महंगे बीज और जैविक खाद के साथ बेतहाशा मेहनत के बाद जब फसलें तैयार होकर बाजारों में बिकने को पहुंचते हैं तो इसकी सही कीमतें किसानों की जेबों से काफी दूर हो जाती है ।यही कारण रहा होगा कि कभी जूट की विशाल मंडी कहे जाने बाले किशनगंज से जूट की खेती अचानक गायब हो गई। बाजार में मूल्य निर्धारण के बीच बिचौलियों की मनमानी ,जे सी आई में बड़े व्यापारियों का वर्चस्व ,थक हार कर जूट की खेती से अपना मुंह मोड़ लिया ।और तील तथा कौनी की उपज के लिए मेहनत करने लगे ,पर दूर्भाग्य ने किसानों का पीछा नहीं छोड़ा ।इन फसलों के साथ भी बाजारों में वही पुराना दुर्व्यवहार होने लगा ।अंतोगत्वा इन सभी फसलों की जगह किसानों ने उत्साहित होकर गेंहूं की फसलों को अपना कैशक्राप बना लिया ।जो वर्तमान में कहीं कहीं दिख रहा है ,इसके पीछे भी वही कारण छुपा था ।फलतः लोग मक्कों की खेती के लिए आगे आये तो आगे हीं बढ़ते गये ।आज खेतों की हरियाली मक्कों को देखकर सहज अनुभव किया जा सकता है ।जहाँ और जहाँ तक आपकी नजरें जाऐंगी ,बस मक्के हीं मक्के की फसलें दिख जाऐगी ।किसानों की माने तो पिछले साल देहाती बाजारों में इसका दर 1,800 से 2,200 के आसपास था ।पर अब जब फसलें तैयार होने की कगार पर है या फिर पहले बोये गये फसल तैयार होकर बाजारों में आने लगे हैं तो फिर वही ढाक के तीन पात ।बाजार नीचे की ओर खिसकने लगा है ।आखिर जिले के किसान क्या करें ? एक जटिल प्रश्न किसानों के चेहरों पर उभर आता है ।
आखिर हो भी क्यों नहीं - कभी मौसमों की मार ,तो कहीं बाजारों से अनाज खरीददार सेठों की मार ,तो वहीं खरीदारी में भांजी मारती सरकारी नीतियों ने यहाँ के किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है ।अगर किसानों की सुनी जाय तो सरकारी खरीद और कीमतों की घोषनाओं के बाद त़ो ये फूले नहीं समाते ।पर सरकारी खरीद जो हमेशा समय बिताकर काफी देर से शुरु की जाती है ।तब तक गरीबी और कर्ज की मार सहते किसान अपनी फसलों की उपजों को माटी के मोल बेच देते हैं ।भला ऐसे में जिले के अन्नदाता किसानों की भलाई और इसकी उन्नती के लिए सरकारी घोषनाऐं भला किस काम का ,जब फसलें बिकती हो मनमाने दाम पर ।
1 Comments
Website ko customize krlo bhai
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