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कोरोना संक्रमण के बीच गरीबों के पेटों में लगी आग।

अनुदानित पैसों के लिए लगी बैंको में भीड़।

कोरोना संक्रमण के बीच गरीबों के पेटों में लगी आग।

किशनगंज टाइम्स के लिए शशिकांत झा की रिपोर्ट।

किशनगंज (बिहार)- लाकडाऊंन में गरीब ,मजदूर और लाचार लोगों के पेट की आग किसी भी सावधानियों के सामने बेबस और लाचार हो चुकी है ।जहाँ दो वक्त के निवालों की जुगाड़ में सरकारी अनुदान के पैसों की निकासी ,गैस लेने के लिए खुले मैदानों में चिलचिलाती धूप की परवाह किये वगैर गैस लेने की आपाधापियों के बीच गुजर रही है इनकी जिन्दगियां ।  

             एक वक्त का खाना और सरकारी घोषनाओं के अनुरूप व्यवस्थाऐं अखवारों की हेडलाइन बनती जा रही है ।जिसको देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि कोरोना का संक्रमण और इसके बढ़ते प्रकोप ने चारों ओर आपाधापी मचा रखी है ।सभी चेहरों पर मास्क और गमछों ने अपनी जगहें मुकम्मल कर रखी है ।वहीं सरकारी सुविधाओं की घोषनाओं पर लोग सवाल उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं ।और कहने लगते हैं कि सारी सुविधाएं अगर लोगों तक पहुंचती रहती तो शायद बैंकों ,गैस वितरकों और अन्य आवश्यक सेवाओं के फाटकों पर इतनी भीड़ ना होती ।जिस भीड़ में इन बेबस लाचारी की मजबूरियों से कुछ कमा लेने की जुगत कथित लालचियों की भी पौं बारह होने की बातों से इन्कार नहीं किया जा सकता है।जिसे लेकर भी प्रतिवंधित सवारियां गांवों की सड़कों ,गली मुहल्लों में फर्राटे भरती नजरें आती रहती हैं ।शहर के जागरुक लोग और सरकारी सहायता अगर खबरों की सुर्खियां  बनकर लोगों तक पहुंचते जा रहे हैं ।तो दूसरी ओर गांव गवई और सूदूर देहाती क्षेत्रों में जागरूकता की कथित कमियां ,कानून के जानकारियों का अभाव और वेवजह मनमानियों के सिलसिलाओं पर भी पैनी नजरे उठाने की जरुरतों को लोग महत्वपूर्ण मान रहे हैं।
चूल्हा जलाने की होड़
सोशल डिस्टेंसिंग ,भीड़ ना लगाने की पावंदियां मानो इन पर बेअसर हीं लगती है ।जिससे ये अनजाने में हीं सही अपने घरों से निकल पड़ते हैं और सवाल करने पर वही रटा रटाया संदेश "घोषित आवश्यक सेवा" ।जबकि किराने की दूकाने ,दूध की दूकाने और भोजन के सामानों के खरीद बिक्री की दूकाने भीड़ से अछूती नहीं कही जा सकती है ।जहाँ सरकारी घोषनाओं के बाद भी सामान नहीं आने की वजह बताकर लोग ऊंचे दामों पर सामानों को बेचने का अथक प्रयासों को भी सिरे से खारिज करना उचित नहीं लगता है ।बेबस लाचार अगर बढ़ी कीमतों पर सामान खरीदते पूछे जाते हैं तो - जबाब साफ मिलता है कि दूकानदार कहते हैं कि हाल सेलर के यहां दाम बढ़ गया है ।ऐसे में कई प्रवुद्ध लोग बिना नाम बताये कहने से नहीं चूकते हैं कि - कहीं दूकानें तो छोटी है ,पर गोदामों में सामान तो भरे पड़े हैं ।जहाँ जांच करने बाले अमलों को भी गच्चा खाना पड़ता है ।पर देहाती क्षेत्रों में शिकायत करने पर सामान नहीं मिलेगा के भय से लोग विपदा की इस घड़ी में औने पौने दाम पर सामान खरीदते हैं ।जिसके कारण  चाहे अनचाहे भी कालाबाजारी किये जाने की चर्चाऐं आम हो चली है ।देहात की कौन पूछे शहरी इलाकों से भी किराना सामान "आऊट आफ मार्केट " की बातें आराम से सुनी जा सकती है ।इन बिकट और दुखदाई परिस्थितियों में गरीबों के निवालो की बढ़ी कीमतें भी उनकी पकड़ से बाहर निकलती जानी जाती है ।जहाँ सरकारी अनाजों का वितरण ,अनुदानित गैस और अनुदान के सरकारी पैसों पर कथित लाचार -बेबस एवं गरीब  अपना गुजारा कर घरों में दुबके पड़े रहते हैं ।वहीं कल का चीनी ,दाल ,करुवा तेल ,आलू ,प्याज एवं अन्य भोजन सामिग्रियां अपने रास्ते अपने बढ़े मूल्यों पर आगे के सफर को तय करने में लगी है ।जबकि लाकडाऊंन के अवधियों का विस्तार किया जा चुका है ।इन परिस्थितियों के कोरोना पर लगाम लगाने में महकमाओं की कोशिशें  आमलोगों के लिए अत्यंत लाभकारी और जीवनदायक साबित हो सकते हैं।

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