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मौसम की मार ,कोरोना का वार और अनाज का टूटा बाजार ,बेबस किसानों की तोड़ती कमर ।ईश्वर तेरा सहारा .... ।


चिलचिलाती धूप में फसल तैयार करते किसान।

 
     किशनगंज (बिहार )-जिले में मौसम की बेरुखी और बाजारों में मक्कों की कम कीमत़ों की दोहरी मार झेल रहे हैं किसान ।पिछले साल की अच्छी कीमतों पर जिस उत्साह से किसानों ने मक्के लगाये थे ,वह सपना अब टूटकर बिखरने लगे हैं ।
              खेतों में मक्कों के लहलहाती फसलों को देखकर जहाँ किसानों में दिन सवंरने की आश जगी थी ।उसका पूरा होना अब संभव होता नहीं दिख रहा है ।फसल जब तैयार होने का समय आया तो मौसम ने एकाएक करबटें बदलनी शुरु कर दी ।लोगों ने सोचा थोड़ी बहुत बर्षा से फसलों को ना के बराबर नुकसान हो सकता है ।पर कुदरत के खेल निराले दिखने लगे ।जिससे आधे दिन कड़क धूप और देखते हीं देखते तेज हवा के साथ ऑंधी से फसलें खेतों में गिरकर सड़ने के कगार पर ।दूसरी ओर एक दिन बाद एक दिन की बर्षा और तेज हवाओं ने तो किसानों को मायूस कर दिया ।भाग्य से जितने फसलों को तैयार किया गया ,उसके भाव माटी के मोल से अधिक नहीं थे ।देहाती ईलाकों में मक्कों का दाम अभी 850 से 1000 रु.प्रति क्वींटल है ।जबकि पिछले बर्ष यह 2000 रु.प्रति क्वी. था ।एक तो कोरोना का डर और दूजे मौसम की बेरुखियों के बाद किसानों को बाजार में गिरे हुऐ  दाम जीने मरने के लायक नहीं छोड़ा है।
चिलचिलाती धूप में मकई तैयार करता किसान।

जहाँ बाजारों में शिकारी की तरह बिचौलियों ने कम दाम का जाल बिछा रखा है ।पैसों की वजहों से किसान इस जाल में फंसते जा रहे हैं ।अर्थशास्त्र का फार्मूला लेवाल कम और फसलें ज्यादा तो मनमाने दाम ,जहाँ सरकारी सहायताओं की घोषनाओं की भरमार तो है ,पर सरकारी खरीद की नहीं ।फलतः मरता क्या नहीं करता ,इसलिए किसान अब लॉकडाऊन और महामारी में कुछ मिल जाये की वजह से अपने मेहनत की कमाई पर पानी फिरता टुकुर टुकुर ताक रहा है ।

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