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किशनगंज: भारत नेपाल की सीमा से सटे बलुवाडांगी की करुण कहानी,ग्रामीणों की जुबानी। kishanganj Times


भारत नेपाल की सीमा से सटे बलुवाडांगी की करुण कहानी,ग्रामीणों की जुबानी।

दिघलबैंक से घनश्याम की विशेष रिपोर्ट।

आधी अधूरी सड़क पर मुंह चिढ़ाता कलवर्ट।

किशनगंज (बिहार )-बिहार में विकास की बहती वयारों के बीच ,भारत नेपाल को बांटने बाली सीमा से सटा बलुवाडांगी गांव बिहार के नक्शे का एक बदनुमा भाग कहलाता है ।जहाँ नेपाली माओवादियों ने एक समय भारतीय सीमा में आकर अपना झंडा गाड़ गये थे ।पर यहाँ विकास की बातें आवागमन और मूलभूत सुविधाओं को लेकर थोथी दलील बन चुकी है ।पगडंडीनुमा रास्ते ,आधी अधूरी कलभर्ट यहाँ की अजूबी दास्तां वयां करने को काफी है।
                      किशनगंज जिला मुख्यालय से 35 कि.मी.दूर दिघलबैंक प्रखंड का पच्छिमी और सुदूर सिंघीमारी पंचायत का यह बलुवाडांगी गांव आज भी अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है ।पर इसे सरकारी अमलों की चूक कही जाय या फिर जनप्रतिनिधियों में विकास कार्यों के प्रति इच्छाशक्ति की कमी ।एक अदद कच्ची सड़क भी यहाँ के ग्रामीणों को मयस्सर नहीं है ।टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियां ,नदी के किनारे किनारों से चलकर ग्रामीण पलसा की सड़क पकड़ पाते हैं ।तब कहीं जाकर ये प्रखंड ,अंचल और हाट -बाजारों का सुख पाते हैं ।यह कोई कहानी नहीं इस गांव की हकीकत है ।जहाँ अब बरसात में लोग अपना गुजारा कैसे करते हैं ।आईऐ इसी गाँव के ग्रामीणों की जुबानी ,सुनाते हैं कहानी ।इस गांव के मदन मोहन सिंह ,भद्रू लाल ,डोमा लाल ,पांडव लाल ,डोरा लाल सिंह सामुहिक रुप से बतलाते हैं कि -सड़क के वगैर बदहाल जीवन बिताने को मजबूर हैं हम ।बर्षात के दिनों में जब नदी भर जाती है ,चारो ओर पानी फैल जाता है ,उस समय कोई पदाधिकारी यहाँ आकर देखें तो हमारी तकलीफें महसूस कर पायेंगे ।ऐसी दुख मुशिबतों में नये डी एम साहब से कुछ उम्मीद है ।जो हमें आजाद भारत के नागरिक का अधिकार दें सकेंगे ।

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